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गुरुवार, अप्रैल 29, 2010

सच सच बता, तू हिन्दू है या मुसलमान !!!


हर भर में दंगाई अपने करिश्माई अंदाज़ में लोगों को मार-काट रहे थे, हर तरफ़ चीख़-पुकार ही सुनाई दे रही थी. हिन्दू मुसलमान के खून का प्यासा तो मुसलमान भी हिन्दू को मार काट रहे थे. आज वे उन्हीं की जान के दुश्मन बन बैठे थे जिन्हें कल सलाम-नमस्ते करते थे. आज के पहले शायेद ही किसी ने जय श्री राम या नारे तकबीर कहा होगा लेकिन आज उनकी आव़ाज में वो 'दुर्जोश' था कि लम्हा दर लम्हा बढ़ता ही जा रहा था. 

एक अधेड़ व्यक्ति इन सब से अनजान अपने काम से शहर के बाहर से उसी दरमियान अपने घर वापस आ रहा था. उसे जब तक नज़ारा समझ में आता कि दंगाईयों का एक जत्था वहां आ गया और उस व्यक्ति को पकड़ लिया. कोई कह रहा था, मार डाल  साले को. कोई कह रहा था काट डाल साले को. 

तभी उनमे से एक ने उस व्यक्ति से कड़क आवाज़ में पूछा - बता साले, तू हिन्दू है या मुसलमान?

उस व्यक्ति ने उन सभी दंगाईयों पर एक निस्तेज नज़र डाली और कहा - भाई, अगर आप हिन्दू हो तो मुझे मुसलमान समझ कर मार दो..... और अगर आप मुसलमान हो तो मुझे हिन्दू समझ कर मार डालो...!!!

इस तरह के जवाब के लिए वो दंगाई तैयार नहीं थे और हैरत में पड़ गए और अपना अपना हथियार ज़मीन पर फेंक दिया!!!
उन्हें अब समझ आ गया था कि वो कौन है...........और किसे मार रहे थे!!!!!!!!!!!!!

-स्रोत: क्रांतिवीर

शुक्रवार, अप्रैल 23, 2010

'रेड-इन्डियन' कौन है और प्रेतात्माओं से उनका क्या सम्बन्ध है?

अमेरिका के आदिवासियों को रेड इंडियन कहते है. हालाँकि सभ्यता ने इन्हें काफी हद तक आधुनिकता के ढांचे में ढाला है, फिर भी उतरी अमेरिका में बहुत से आदिवासी क़बीले ऐसे है, जिनमें अब भी विचित्र प्रकार के विश्वास, धार्मिक मान्यताएं और  रितिरिवाज़ों किसी न किसी रूप में चले आ रहें हैं. इन अजीबोगरीब रीतिरिवाजो और विश्वासों को देखकर इनके प्राचीन जनजीवन की विचित्र झांकी देखने को मिल जाती है.

कुछ जन जातियों में उनके पूर्वजों का यह विश्वास है कि सूर्य, चन्द्रमा, वर्षा, वायु तथा अन्य प्रकितिक शक्तियां सजीव देवता  है. वे आज भी अपने पूर्वजों की भांति इनकी पूजा करते है. इन सब सजीव देवताओं में ये सूर्य को सबसे अधिक महत्व दिया जाता है. इन आदिवासी सभ्यता की बुनियाद इन प्राकृतिक शक्तियों तथा पूर्वजो की प्रेतात्माओं में अटूट विश्वास पर पड़ी थी. इनका यह विश्वास था की प्रत्येक प्राकृतिक वस्तुओं में प्रेतात्माएं होती है जिनसे आसानी से संपर्क स्थापित किया जा सकता है.

अपने पूर्वजों की भाँति कुछ जनजातियाँ यह मानती हैं कि सूर्य और चन्द्रमा के अलावा एक और जीवन देने वाली शक्ति है, यह शक्ति समुन्द्र के भीतर रहती है. इसे वे ग्रेट मदर या परम माता कहते हैं. आधुनिक सभ्यता से अछूती इन जन-जातियों में अब भी यह विश्वास है कि जीवा के सुख के लिए दिन-प्रतिदिन प्रेतात्माओं की सहायता लेना ज़रूरी है. 

इन क़बीलों के पूर्वज तांत्रिकों को जीवन में बहुत महत्त्व देते थे. ये तांत्रिक प्रेतात्माओं के मदद के ज़रिये लोगों के रोगों का इलाज करते थे. इनका विश्वास था कि सारे रोग प्रेतों के प्रकोप के कारण होते हैं और ये रोग प्रेतों की पूजा करके ही दूर किये जा सकते हैं. ये तांत्रिक समाधी लगा कर अथवा प्रेतात्माओं का आह्वाहन करके रोगों की चिकित्सा करते थे.ये अवचेतन की स्थिति आगे आनेवाली घटनाओं की सुचना भी देते थे. सबसे आश्चर्य की बात यह है कि इन क़बीलों के पूर्वज अपने तन को ढांकने की कोई ज़रूरत नहीं समझते थे. इसकी मिसाल कुछ यूँ समझिये कि जैसे भारत में पहले लोग रहते थे ठीक वैसे ही. पेड़ों की पत्तियों अथवा छालों से तन ढांकना सामाजिक हैसियत तथा व्यक्तिगत हैसियत की निशानी समझते थे. पुरुष योधाओं कि वेशभूषा भी निराली होती थी. बाद में पुरुष और स्त्री दोनों बॉडी-पैंट पहनने लगे. रेड इंडियनों के क़बीलों का एक धार्मिक भवन होता होता था. यहाँ वे अपने मृतकों के शव को सुखाते थे और फ्रेम में रखते थे.

वे आकाश को अपने पूर्वजो का निवास मानते थे. वे सितारों को अपने पितरों के लोक का दीपक मानते थे. कुछ बुद्धिमान लोग यह भी कहते थे कि वे आकह्स में बसने वाले क़बीलों के कैंप फायर हैं. उनके अनुसार आकाश लोक बड़ा विचित्र है. वहां सदा ग्रीष्म-ऋतु ही रहती है. इंसानों और जानवरों दोनों की आत्माएं एक साथ रहती हैं. न उन्हें एक दुसरे की जान लेने की ज़रुरत होती है न शिकार करने की. यहाँ सूरज घर है. चन्द्रमाँ सूरज का छोटा भाई है जो अपनी नियमित यात्रा पर रहता है.

प्रेतात्माओं के पुजारी रेड-इंडियन 'पशु-प्रेतों' को अधिक महत्व देते हैं. उनके पानी पीने के जग का आकार उल्लू जैसा होता है. उल्लू एक ऐसा प्राणी है जो क़बीलों के पौराणिक कथाओं में अपना अलग ही महत्व रखता है. अधिकतर जन-जातियों का विश्वास है कि पशुवों के रूप में रक्षक प्रेतात्माओं को युवक उपवास तथा अपने को शारीरिक कष्ट देकर सिद्ध कर सकते हैं.

अरे ये क्या ! 'सलीम ख़ान' ने ब्लॉग-जगत से लिया चुपके से अलविदा.


आज सुबह-सुबह मैंने अपना ब्लॉग खोला तो एक टिपण्णी देखकर चौंक गया. वह टिपण्णी किसी और की नहीं सलीम ख़ान की थी जिसमें एक गाना था ये ज़िन्दगी के मेले... और उस टिपण्णी में सबसे नीचे लिखा था 'alvida bloging'. 


तो क्या सलीम ख़ान ने हिंदी ब्लॉग जगत से इस्तीफ़ा दे दिया है. आखिर सलीम ख़ान को ब्लॉग जगत से इस्तीफ़ा देने के लिए किसने मजबूर किया? क्या यह फिरदौस जी का मैटर तो नहीं जिससे वह इस क़दर आहत हो गए? 

यही नहीं जब मैं ब्लॉग पर गया तो बहुत ज़्यादा आश्चर्य में पड़ गया. स्वच्छ सन्देश नामक ब्लॉग का अब नामों निशान नहीं बचा था. न कोई पोस्ट न  कोई टिपण्णी. आप स्वयं देखिये.

मगर सवाल यह है कि क्या सलीम ख़ान द्वारा लिया गया फैसला सही है, या नहीं? मेरा मानना है कि सलीम ख़ान को इस तरह से खामोश नहीं हो जाना चाहिए, दुसरे शब्दों में इस तरह से पीठ दिखा कर चले नहीं जाना चाहिए.  

गुरुवार, अप्रैल 22, 2010

सभी मुस्लिम ब्लॉगर्स को बहिस्कृत कर प्रतिबंधित कर देना चाहिए सिवाय महफूज़ जी, फ़िरदौस जी और मेरे ब्लॉग को


इधर कुछ दिनों से ब्लॉग जगत में धार्मिक विद्वेष वाली पोस्ट लिख कर चंद लोग खूब सुर्खियाँ बटोर रहें हैं. एक तरफ़ वे है जो इनका विरोध करके अपनी रोटी सेंक रहें है तो दुसरी तरफ़ उनका समर्थन कर. मैंने देखा है कि इन सब से दूर मैं और महफूज़ जी और फ़िरदौस जी हमेशा से ही मध्यस्थ रहें है और देश-हित के समर्थन में रहें है. मैं तो ख़ैर नया ही हूँ. 

कुछ लोग ब्लॉग को प्रतिबन्ध की बात कर रहें हैं तो मेरा मानना है कि क्यूँ न सभी मुस्लिम ब्लॉगर को बहिस्कृत कर देना चाहिए सिवाय महफूज़ जी, फ़िरदौस जी और मेरे ब्लॉग को.

मेरी बात का समर्थन देने वाले लोगों से अपील है कि इस मुद्दे पर मेरा साथ दें कि सभी मुस्लिम ब्लॉगर्स को बहिस्कृत कर प्रतिबंधित कर देना चाहिए सिवाय महफूज़ जी, फ़िरदौस जी और मेरे ब्लॉग को.

मंगलवार, अप्रैल 20, 2010

.........औरत की ताकत उसकी हिम्मत में है...



औरत का हुस्न उसकी सादगी  में है .

औरत की ताकत उसकी हिम्मत में है .

औरत की हया उसकी नजरो में है .

औरत का गुस्सा उसकी ज़बान पर है .

औरत की काबिलियत उसकी सीरत में है.
 
औरत  का ज़मीर उसकी ख़ामोशी में है. 

गुरुवार, अप्रैल 08, 2010

आंसू: EJAZ AHMAD IDREESI

ह छोटा सा लफ्ज़: आंसू. दिखने में पानी की एक छोटी सी बूंद है. लेकिन यह अपने अन्दर समंदर की गहरी गहराई रखता है. जिन हालत से गुज़र कर यह किसी रोने वाले की आँख से बहता है वह दर्द वह दुःख वही आँख बयां कर सकती है. औरत की आँख से निकलने वला एक अंशु पत्थर दिल मर्द को मोम कर सकता है. अगर यही आंसू किसी मर्द की आँखों से निकले तो समझ लो कि वह सख्त गम कि अथाह गहराईयों से गुज़र रहा है क्यूंकि मर्द की आँख से सिर्फ उसी वक़्त आंसू निकल सकते है जब वह मुश्किल-तरीन हालात से गुज़र रहा हो ! और जब यही आंसू खुदा के खौफ़ से किसी की आँख से टपकता है तो ऐसे आंसू की कद्र-ओ-कीमत खुदा के नज़दीक बहुत ज़्यादा होती है और हो सकता है कि यही आंसू उसके तमाम पिछले गुनाहों को धो दे ! जब यही आंसू अपने किसी बहुत ही अज़ीज़ की आँखों से निकले तो उसे 'मोती' कहा जाता है और उस आंसू को ज़मीन से गिरने से पहले ही हथेलियों पर उठा लिया जाता है. मगर कुछ आँखे ऐसी भी होती जिनके आंसुओं की कोई कद्र-ओ-कीमत नहीं होती है और उन आँखों को पोछने वाला तक नहीं होता है; कितने बदनसीब होते है वे आंसू जिनकी कोई परवाह नहीं करता है.

आंसू बहाव यह सोच कर नहीं कि हमारी ख्वाहिशे पूरी नहीं होती
बल्कि यह सोच कर रोवो कि हम कितने गुनाहगार है कि 
हमारी दुआएं अल्लाह तक नहीं पहुँचती...


-EJAZ AHMAD IDREESI
लारैब: हर बात, हक़ बात 

बुधवार, अप्रैल 07, 2010

मुझे किसी ब्लॉगर ने बहकाया था; ब्लोगिंग की अहमियत मैंने अब पहचानी है; मैं अब स्वस्थ ब्लोगिंग ही करूँगा: EJAZ AHMAD IDREESI

प्रिय ब्लॉगर बन्धुवों ! मैंने मार्च के आखिरी हफ़्ते से ही ब्लोगिंग शुरू की थी. मुझे मेरे एक बहुत ही क़रीबी दोस्त ने ब्लोगिंग करने की सलाह दी थी चूँकि मेरे पास इतना समय बच जाता है कि मैं ब्लोगिंग कर सकता हूँ इसलिए मैंने हामी भर दी. लेकिन शुरू में मैं कच्चा था, इसलिए टोटल उसी ब्लॉगर के बहकावे में आ गया और धार्मिक विद्वेष वाली कुछ पोस्ट्स डाल दी. यकीन मानिये मैं व्यक्तिगत रूप से बेहद भावुक व्यक्ति हूँ और शौक रखता हूँ शेर-शाएरी व कविताओं का. मैं यह सब नहीं करना चाहता था. चूँकि मैंने ब्लोगिंग के इस तरह के नकारात्क स्वाभाव को जानता नहीं था इसलिए नतीजा भी नकारात्मक ही निकला और आप लोगों की निगेटिविटी का सामना करना पड़ा. यही नहीं, ब्लोगवाणी ने भी मुझे अपनी लिस्ट से बहार निकाल दिया था. मैं किसी को बदनाम नहीं करना चाहता हूँ इसलिए उस ब्लॉगर का नाम मैं नहीं बता सकता अथवा समय आने पर मैं बता दूंगा.

लेकिन अब मैं सिर्फ सामयिक लेख ही लिखूंगा और वे लेख जो कि स्वस्थ ब्लोगिंग व हिंदी ब्लोगिंग को बढ़ावा दे सकें.

जय हिन्दुस्तान-जय भारत!

आप सबका  
EJAZ AHMAD IDREESI