अमेरिका के आदिवासियों को रेड इंडियन कहते है. हालाँकि सभ्यता ने इन्हें काफी हद तक आधुनिकता के ढांचे में ढाला है, फिर भी उतरी अमेरिका में बहुत से आदिवासी क़बीले ऐसे है, जिनमें अब भी विचित्र प्रकार के विश्वास, धार्मिक मान्यताएं और रितिरिवाज़ों किसी न किसी रूप में चले आ रहें हैं. इन अजीबोगरीब रीतिरिवाजो और विश्वासों को देखकर इनके प्राचीन जनजीवन की विचित्र झांकी देखने को मिल जाती है.
कुछ जन जातियों में उनके पूर्वजों का यह विश्वास है कि सूर्य, चन्द्रमा, वर्षा, वायु तथा अन्य प्रकितिक शक्तियां सजीव देवता है. वे आज भी अपने पूर्वजों की भांति इनकी पूजा करते है. इन सब सजीव देवताओं में ये सूर्य को सबसे अधिक महत्व दिया जाता है. इन आदिवासी सभ्यता की बुनियाद इन प्राकृतिक शक्तियों तथा पूर्वजो की प्रेतात्माओं में अटूट विश्वास पर पड़ी थी. इनका यह विश्वास था की प्रत्येक प्राकृतिक वस्तुओं में प्रेतात्माएं होती है जिनसे आसानी से संपर्क स्थापित किया जा सकता है.
अपने पूर्वजों की भाँति कुछ जनजातियाँ यह मानती हैं कि सूर्य और चन्द्रमा के अलावा एक और जीवन देने वाली शक्ति है, यह शक्ति समुन्द्र के भीतर रहती है. इसे वे ग्रेट मदर या परम माता कहते हैं. आधुनिक सभ्यता से अछूती इन जन-जातियों में अब भी यह विश्वास है कि जीवा के सुख के लिए दिन-प्रतिदिन प्रेतात्माओं की सहायता लेना ज़रूरी है.
इन क़बीलों के पूर्वज तांत्रिकों को जीवन में बहुत महत्त्व देते थे. ये तांत्रिक प्रेतात्माओं के मदद के ज़रिये लोगों के रोगों का इलाज करते थे. इनका विश्वास था कि सारे रोग प्रेतों के प्रकोप के कारण होते हैं और ये रोग प्रेतों की पूजा करके ही दूर किये जा सकते हैं. ये तांत्रिक समाधी लगा कर अथवा प्रेतात्माओं का आह्वाहन करके रोगों की चिकित्सा करते थे.ये अवचेतन की स्थिति आगे आनेवाली घटनाओं की सुचना भी देते थे. सबसे आश्चर्य की बात यह है कि इन क़बीलों के पूर्वज अपने तन को ढांकने की कोई ज़रूरत नहीं समझते थे. इसकी मिसाल कुछ यूँ समझिये कि जैसे भारत में पहले लोग रहते थे ठीक वैसे ही. पेड़ों की पत्तियों अथवा छालों से तन ढांकना सामाजिक हैसियत तथा व्यक्तिगत हैसियत की निशानी समझते थे. पुरुष योधाओं कि वेशभूषा भी निराली होती थी. बाद में पुरुष और स्त्री दोनों बॉडी-पैंट पहनने लगे. रेड इंडियनों के क़बीलों का एक धार्मिक भवन होता होता था. यहाँ वे अपने मृतकों के शव को सुखाते थे और फ्रेम में रखते थे.
वे आकाश को अपने पूर्वजो का निवास मानते थे. वे सितारों को अपने पितरों के लोक का दीपक मानते थे. कुछ बुद्धिमान लोग यह भी कहते थे कि वे आकह्स में बसने वाले क़बीलों के कैंप फायर हैं. उनके अनुसार आकाश लोक बड़ा विचित्र है. वहां सदा ग्रीष्म-ऋतु ही रहती है. इंसानों और जानवरों दोनों की आत्माएं एक साथ रहती हैं. न उन्हें एक दुसरे की जान लेने की ज़रुरत होती है न शिकार करने की. यहाँ सूरज घर है. चन्द्रमाँ सूरज का छोटा भाई है जो अपनी नियमित यात्रा पर रहता है.
प्रेतात्माओं के पुजारी रेड-इंडियन 'पशु-प्रेतों' को अधिक महत्व देते हैं. उनके पानी पीने के जग का आकार उल्लू जैसा होता है. उल्लू एक ऐसा प्राणी है जो क़बीलों के पौराणिक कथाओं में अपना अलग ही महत्व रखता है. अधिकतर जन-जातियों का विश्वास है कि पशुवों के रूप में रक्षक प्रेतात्माओं को युवक उपवास तथा अपने को शारीरिक कष्ट देकर सिद्ध कर सकते हैं.
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